ये भटकाव ,
तोड़ता ही रहा है,
तोड़ता ही रहेगा ,
कोई लगाम ,
नहीं है शायद कही ,
किस -किस से जुड़ता रहा,
किस -किस से टूटता रहा,
जुड़ता रहा,टूटता रहा,
बिना किसी राह के ,
हिचकोले खाता रहा,
हर लहर हिलाती गई ,
हिलता ही रहा,
कापता ही रहा,
हालात ऐसे हुए कि ,
बिना लहरो के लहराता रहा,
हवा के झोंके भी,
लहरो कि तरह हिलाने लगे,
सूरज कि घटती बढ़ती रौशनी ,
लहरो की तरह हिलाने लगी ,
सन्नाटा जो लगा थोडा सा,
लहरे महकने लगी ,
रोक किसी कोने में रही नहीं,
अंदर बंदरगाह बना नहीं,
कोई बांध बंधा नहीं,
सब जल ही तो है,
ये जिदगी ही तो है,
हर वकत खाई नहीं है,
खयालो का दावानल नहीं,
बेसिरपैर की दौड़ नहीं ,
Wilderness. Hindi poem

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