उड़ते पंछी भी घायल हो जाये
उसकी नज़र से
साधा है नज़र को
साधना में लीन होकर
उस देव की
जिसे देव समझा था
और कुछ क्या हुवा
पर नज़र सध गयी
अब निशाने खोजने लगी
अंदर जो कुछ है
निकालने के तीर है
तरकश ,में
नज़र का असर है
जीव पर निर्जीव पर
जीवन बख्शती है नज़र
रोनके बिखेरती है
साथ साथ चलता है मंज़र
जाने के बाद भी
बहुत देर तक हैरान है
तीर चोट कर गया
पर निशाने को तोलती है
बन जाती है उनकी नज़र
बाज़ार का एक हिस्सा भी
फेलाव है दूर तक
छिपे मर्म पर
चर्चा आम होती है
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