भ्रम ही तो है
जो बना रहे
ऑंखें खुली तो
सामने है
ऑंखें बंद है तो
भ्रम है
हर रात सोकर
लीन होते है
अनंत की
गहराई में
सुबह उठकर
फिर भ्रम
उभरते है
बना रहे
निभाने को
मेरा बजूद
जब
झांकता है दिन में
और
ख्वाब में
चैन ले आये
उम्र की सीडी पर
चढ़ते उतरते है
भ्रम का ही
सहारा है
जो हर दोर में
बनाये रहता है
वही रस
जो भ्रम है
पर ताल है
पर लय है
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