यह बात कहते हुवे
उनका
मुह ऐसे खिला होगा
कुछ झलका होगा
रंग जो
पीड़ा की खाई में से
जैसे उभरा हो
जिसका कोई रंग नहीं
जिसकी कोई गंध नहीं
जिसकी कोई पहचान
समझ नहीं आई
पर ख्याल जो
विचार जो लहराए है
विचारो की सेरगाह में
ज्वाला और भड़काते है
ज्वाला भी लहलहाई है
किसी छोर ऊँची तो
किसी और नीची
पीड़ा उसमे भी झलकती है
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