सहारे सब बिछड़ते गए
आधार सब हिलते गए
जिनकी आस पर टिका था
वो आस बुझने लगी
मन डगमगाने लगा
बेसाखियो के सहारे
आखिर कब तक चलेगा
नये सहारे कहा खोजे
पुरानी चोट काफी है
खुद को खुद का सहारा
मिल जाये
तो और क्या चाहिये
जो आज तक न था
जरुरी तो नहीं
कभी नहीं हो सकता
कदम जो आज तक
ना बड सके
उस राह पर
क्या पता अब
बढ चले
सहारे खुदके
कुछ पल के लिए भी
कुछ सकून मिल जाये
निर्भरता बहार पर
रहे या न रहे
विस्वास खुद पर रहे
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