यात्रा में मंजिल नहीं
स्टेशन होते है
हर स्टेशन पर
यात्री चड़ते उतरते है
कुछ देर ठहरते है
फिर चल देते है
चलना ही गति है
चलना ही नियती है
हर स्टेशन का अंदाज
अलग अलग है
कुछ देर बहलते है
रुक जाने से
फिर नए की खोज
कुछ ऐसा जो
गहराई तक जाये
की तलाश में
नए स्टेशन पर भटकते है
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