रात को गुजर जाने दो
भोर का इंतजार करो
कही देर न हो जाये
रात कटती नहीं
कांटे जो लगे थे
वो हर कांटा उभरता है
एक कांटा हल्का पड़ता है
तो दूसरा उभरता है
रात को रोक दिया है
इन बहते लावा ने
जल चूका सारा आलम
फिर भी आग की लपटों मै
कोई नमी नहीं
जलने को तैयार है
धरती के कोख से
जैसे निकलता लावा
जहा जहा छूता है
वो जलता है
और दूर दूर तक जलन है
दबे पड़े है
कई शूल
जो रह रह कर टीस
उठाते है
कभी अनजान सी
हवा बहती है
ना जाने कोनसी
टीस लिये
कोनसी चोट का उभार है
सब चोटे मिलकर जैसे
सब धुन्दला सा कर दिया
जैसे चोटों ने भी
दिशा खो दी
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