मुझे मेरी ख़ुशी का गम नहीं
आज जिस बात पर खुश है
कल नहीं हू
मेरी दीवारे की नीव
कभी मजबूत होती है
कभी कमजोर होती है
कभी नीव गायब होती है
ये नीव का मिस्त्री
कोई और नहीं
मेरा हिलता डुलता
घूमता फिरता
कोई अद्रश्य वजूद है
जिससे में भी वाकिफ नहीं
जो लगता मेरा दुश्मन है
क्यों जलता है मुझसे
नहीं समजता की
खुद ही तो है
कोई दो नहीं है
खुद को सादना भी
कोई कम काम नहीं
ऐसा लगता है की
में खुद नहीं
डोर कही और से बंधी है
केवल हर पल में
रमना है
जो लगता मेरा दुश्मन है
क्यों जलता है मुझसे
नहीं समजता की
खुद ही तो है
कोई दो नहीं है
खुद को सादना भी
कोई कम काम नहीं
ऐसा लगता है की
में खुद नहीं
डोर कही और से बंधी है
केवल हर पल में
रमना है
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