दिशाओ की दिशाए
तय करता है
ये घूमता सूरज ,चाँद
अगर कुछ ऐसा हो
की दिशा भूल जाये
ये दिशा देने वालें
फिर दिशा न रहे
बस आनंद बच जाये
गोल जब है सब
शरु में आखिर में
जिसकी न शरूआत है
न कोई अंतिम छोर
सिर्फ इक आवरण
से ढका है
सारी भुलभुलिया
वो जो हट गयी तो
उसका क्या रह जायेगा
गोल जब है सब
शरु में आखिर में
जिसकी न शरूआत है
न कोई अंतिम छोर
सिर्फ इक आवरण
से ढका है
सारी भुलभुलिया
वो जो हट गयी तो
उसका क्या रह जायेगा
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