फिर से शाम हो गयी है
फिर तन्हाई का आलम है
फिर वो उदासी है
फिर वो वीराने है
बोझिल है सब कुछ
काटे नहीं कटता है
ये समय का कहर
सोचता हु
क्यों है ऐसा
क्या चाहा था
क्या पाया है
लगा ऐसा की
पाने और न पाना
कोई अर्थ नहीं रखता
ये तो
बहारो को
दिल से
बहार जो कर रखा है
फिर तन्हाई का आलम है
फिर वो उदासी है
फिर वो वीराने है
बोझिल है सब कुछ
काटे नहीं कटता है
ये समय का कहर
सोचता हु
क्यों है ऐसा
क्या चाहा था
क्या पाया है
लगा ऐसा की
पाने और न पाना
कोई अर्थ नहीं रखता
ये तो
बहारो को
दिल से
बहार जो कर रखा है
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