किस किस को
संभाले आदमी
पेट संभलता नहीं
उम्र संभलती नहीं
जवानी में सूझता नहीं
जवानी जब छाती है
ढलान तो है ही
पर कुछ ढलते नहीं
कुछ सदा बुझे होते है
कोई वकत पर ढलते है
क्या संभाले कोई
वो जो है
मुस्ती में मस्त है
ना जाने क्या गडित है
उसकी
पर व्यापर नहीं है
सँभालने को
सदियों से
रचनाये है
संभल पता नहीं
हिलते धरातल पर
पर वो कला हो
जो हिलते धरातल पर
हिल सके जोर जोर से
जी सके चेन से
संभाले आदमी
पेट संभलता नहीं
उम्र संभलती नहीं
जवानी में सूझता नहीं
जवानी जब छाती है
ढलान तो है ही
पर कुछ ढलते नहीं
कुछ सदा बुझे होते है
कोई वकत पर ढलते है
क्या संभाले कोई
वो जो है
मुस्ती में मस्त है
ना जाने क्या गडित है
उसकी
पर व्यापर नहीं है
सँभालने को
सदियों से
रचनाये है
संभल पता नहीं
हिलते धरातल पर
पर वो कला हो
जो हिलते धरातल पर
हिल सके जोर जोर से
जी सके चेन से
Leave a Reply