मुझे मेरी नजाकत्ता का
पूरा इल्म है
पर क्या करू
जो किसी को
समझ नहीं आये
मेरे अन्दर क्या है
मुझे भी इल्म नहीं
किसको पहले समझू
ज़माने को की खुद को
मुझे बनाया जिसने
वो समझ आ जाये
वो पकड़ में आ जाये
तो बात बन जाये
फिर कुछ न रहे
लिखने और पड़ने को
और खूब हसू
उनपर जो
सुबह से शाम
कुछ गिनते रहते है
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